राजभाषा ई पत्रिका मंजरी का विमोचन दिनांक-11.08.2020

 


राजभाषा ई पत्रिका मंजरी-

https://drive.google.com/file/d/16hVv1wyYIJeyoQQfkEAdMhKIE796Ywzr/view?usp=sharing






राजभाषा हिंदी- देश के सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रभावी साधन

 भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। यह ऐसी दैवीय शक्ति है, जो मनुष्य को मानवता प्रदान करती है और उसका सम्मान तथा यश बढ़ाती है। जिसे वाणी का वरदान प्राप्त होता है, वह बड़े से बड़े पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है और अक्षय कीर्ति का अधिकारी भी बन सकता है। किंतु, इस वाणी में स्खलन या विकृति आने पर मनुष्य निंदा ओर अपयश की भी भागी बनता है। यही नही अवांछनीय वाणी, उसके पतन का भी कारण बन सकती है। अतः वाणी या भाषा का प्रयोग बहुत सोच विचार कर करना चाहिए। इसलिए राजकीय कार्यों में पूर्ण सोच विचार के बाद उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने की परंपरा रही है।

          राज्य या प्रशासन की भाषा को राजभाषा कहते हैं। इसके माध्यम से सभी प्रशासनिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। यूनेस्को के विशेषज्ञों के अनुसार उस भाषा को राजभाषा कहते हैं, जो सरकारी कामकाज के लिए स्वीकार की गई हो और जो शासन तथा जनता के बीच आपसी संपर्क के काम आती होजबसे प्रशासन की परंपरा प्रचलित हुई है, तभी से राजभाषा का प्रयोग भी किया जा रहा है। प्राचीन काल में भारत में संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भाषाओं का राजभाषा के रूप में प्रयोग होता था। राजपूत काल में तत्कालीन भाषा हिन्दी का प्रयोग राजकाज में किया जाता था। किंतु भारतवर्ष में मुसलमानों का आधिपत्य स्थापित हो जाने के बाद धीरे-धीरे हिन्दी का स्थान फ़ारसी और अरबी भाषाओं ने ले किया। इस बीच में भी राजपूत नरेशों के राज्य क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग बराबर प्रचलित रहा। मराठों के राजकाज में भी हिन्दी का प्रयोग किया जाता था। आज भी इन राजाओं के दरबारों से हिन्दी अथवा हिन्दी-फारसी, द्विभाषिक रूप में जारी किए गए फ़रमान बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। यह इस बात का द्योतक है कि हिन्दी राजकाज करने के लिए सदैव सक्षम रही है।         

      अंग्रेज़ों ने अपने शासन काल में तत्कालीन प्रचलित राजभाषा फारसी को ही प्रश्रय दिया। परिणामस्वरूप भारत के आज़ाद होने के कुछ समय बाद तक भी फारसी भारत के अधिकांश भागों में कचहरियों की भाषा बनी रही। इस बीच 1855 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी को भारत की शिक्षा और प्रशासन की भाषा के रूप में स्थापित कर दिया था। धीरे धीरे वह न केवल पूर्णतया भारतीय प्रशासन की भाषा बन गई, बल्कि शिक्षा, वाणिज्य, व्यापार तथा उद्योग धंधों की भाषा के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गई। इनता ही नहीं वह भारत के शिक्षित वर्ग के व्यवहार की भी भाषा बन गई। फिर भी, अंग्रेज़ी शासक यह महसूस करते रहे कि भारत की भाषाओं को बहुत दिनों तक दबाया नही जा सकता, अतः उन्होंने हिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी को और अन्य प्रदेशों में, वहां की भाषाओं को प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में शिक्षा का माध्यम बनाया। इस श्रीगणेश का शुभ परिणाम यह हुआ कि हिन्दी और भारतीय भाषएं विकसित होने लगीं और वे उच्च शिक्षा का माध्यम बनी।

      महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं के उद्गारों व प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि जब भारतीय संविधान सभा में संघ सरकार की राजभाषा निश्चित करने का प्रश्न आया तो विशद विचार मंथन के बाद 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ और तभी से देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी विधिवत भारत संघ की राजभाषा है।

          किसी भी स्वाधीन देश के लिए, जो महत्व उसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का है, वही उसकी राजभाषा का है। प्रजातांत्रिक देश में जनता और सरकार के बीच भाषा की दीवार नही होनी चाहिए और शासन का काम जनता की भाषा में किया जाना चाहिए। जब तक विदेशी भाषा में शासन होता रहेगा, तब तक कोई देश सही अर्थों में स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्पष्टता और सरलता से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। नूतन विचारों का स्पंदन और आत्मा की अभिव्यक्ति, मातृभाषा में ही सम्भव है।

      राजभाषा देश के भिन्न भिन्न भागों को एक सूत्र में पिराने का कार्य करती है इसके माध्यम से जनता न केवल अपने देश की नीतियों और प्रशासन को भलीभांति समझ सकती है, बल्कि उसमें स्वयं भी भाग ले सकती है।प्रजातंत्र की सफलता के लिए ऐसी व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है। विश्व के सभी स्वतंत्र देश और नवोदित राष्ट्रों ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उनका उत्थान, उनकी अपनी भाषाओं के माध्यम से ही सम्भव है। इसलिए यद्यपि अंग्रेज़ी के समर्थकों ने उसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और समृद्धि की बड़ी वकालत की, फिर भी राष्ट्रीय नेताओं ने देश के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली और देश के अधिकांश भाग में समझी जाने वाली भाषा हिन्दी को ही भारत संघ की राजभाषा बनाया।  

      राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियम के अनुसार अनेक कागज पत्रों एवं प्रकाशनों को द्विभाषिक रूप में अथवा केवल हिन्दी में जारी करना होता है। विविध प्रयासों के परिणामस्वरूप हिन्दी का प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों विभागो, कार्यालयों, उपक्रमों आदि में वार्षिक कार्यक्रमों को पूरा करने का भरकस प्रयास किया जा रहा है। हिन्दी में सर्वाधिक काम करने वाले मंत्रालयों व विभागों को शील्ड देने की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त हिन्दी में पर्याप्त काम करने वाले को आर्थिक प्रोत्साहन देने की योजना भी विचाराधीन है। राजभाषा विभाग अपने विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से राजभाषा नीति, राजभाषा अधिनियम तथा राजभाषा नियमों की जानकारी देने का पूरा प्रयास कर रहा हे। विभिन्न मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समितियाँ तथा राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। तात्पर्य यह है कि हिन्दी में काम करने का वातावरण बनाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं। यद्यपि हमारी मंजिल कुछ दूर अवश्य है, किंतु हम सब का सहयोग लेते हुए सशक्त और संतुलित कदमों से उसकी तरफ बढ़ रहे हैं। हमें आशा है, हम देर सवेर अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँचेंगे।

हिंदी भाषा पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोलने में चौथे नम्बर पर आती हैजो लोग इस हिंदी भाषा में ज्ञान रखते हैं, उन्हें हिंदी के प्रति अपने ज़िम्मेदारी का बोध करवाने के लिये इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, जिससे वे सभी अपने कर्तव्यों का सही पालन करके हिंदी भाषा के गिरते हुए स्तर को बचा सकें ।अगर हिंदी का विकास करना हैं तो लोगो को दूसरी भाषाओं को छोड़ कर अपनी देश की जन्म भाषा को स्वीकार करना पढ़ेगा इस दिन सभी सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय में अंग्रेजी के बदले हिंदी भाषा को उपयोग करने की सलाह दी जाती है । जो हर साल हिंदी में अच्छे कार्य और अच्छी तरह से इसका प्रयोग करता है तथा लोगो तक हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार करता हैं तो उसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाता है ।

      आज कल संचार का युग हैं इसमें सोशल मीडिया जैसे फेसबुक,व्हाट्स एप, ट्विटरऔर अन्य मीडिया में हिंदी के कई विकल्प रखे गए हैं और साथ ही हिंदी के भंडार भरे पड़े हैं. इसमें भी हिंदी भाषा के शब्दकोश के बारे में जानकारियाँ दी जाती हैं।

फिल्में

बाज़ार

      हिंदी हमारे देश की राजभाषा है, जिसपर हमें गर्व होना चाहिए कि हम हिंदी भाषी हैं। हमें देश की राजभाषा का सम्मान करना चाहिए। हमारे देश में सभी धर्मों के लोग रहते है उनके खान-पान, रहन-सहन और वेश-भूषा अलग-अलग हैं पर एक हिंदी ही हैं जो सभी धर्मों के लोगो को एकता में जोड़ती है । हिंदी भाषा हमारे देश की धरोहर हैं जिस तरह हम अपने तिरंगे को सम्मान देते हैं उसी प्रकार अपने देश की राजभाषा को भी सम्मान देना चाहिए ।

      देश के लेखकों ने हिंदी के ऊपर कई गीत और रचनाएँ लिखी हैं, जिसमें एक हैं-हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तान हमारा।ये शब्द देश की शान में लिखे गए हैं और हमें गर्व महसूस कराते हैं. जय हिन्द जय भारतराष्ट्रीय एकता के संदर्भ में हिन्दी के महत्व का बखान करता है । हमारे बुद्धिजीवियों नेराजकीय संस्थाओं से ही हिन्दी के विकास का सपना देखा है।  हम व्यक्ति से राष्ट्र के क्रम में सोचते हैं। हमारा मानना है कि व्यक्ति मज़बूत हो तो ही राष्ट्र मज़बूत हो सकता है।  इस मजबूती को आधार  अपनी भूमि, भाव तथा भाषा के प्रति विश्वास दिखाने और उसे निभाने से ही मिल सकता है।  हम आज देश में अनेक प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक संकटों के आक्रमण का सामना कर रहे हैं।  इस स्थिति से उबारने के महत्वपूर्ण  कारक का कार्य हिंदी कर सकती है ।यकीनन इसी से राष्ट्र का कल्याण होगा।

 

 

 

राजभाषा हिंदी- देश के सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रभावी साधन

 भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। यह ऐसी दैवीय शक्ति है, जो मनुष्य को मानवता प्रदान करती है और उसका सम्मान तथा यश बढ़ाती है। जिसे वाणी का वरदान प्राप्त होता है, वह बड़े से बड़े पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है और अक्षय कीर्ति का अधिकारी भी बन सकता है। किंतु, इस वाणी में स्खलन या विकृति आने पर मनुष्य निंदा ओर अपयश की भी भागी बनता है। यही नही अवांछनीय वाणी, उसके पतन का भी कारण बन सकती है। अतः वाणी या भाषा का प्रयोग बहुत सोच विचार कर करना चाहिए। इसलिए राजकीय कार्यों में पूर्ण सोच विचार के बाद उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने की परंपरा रही है।

          राज्य या प्रशासन की भाषा को राजभाषा कहते हैं। इसके माध्यम से सभी प्रशासनिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। यूनेस्को के विशेषज्ञों के अनुसार उस भाषा को राजभाषा कहते हैं, जो सरकारी कामकाज के लिए स्वीकार की गई हो और जो शासन तथा जनता के बीच आपसी संपर्क के काम आती होजबसे प्रशासन की परंपरा प्रचलित हुई है, तभी से राजभाषा का प्रयोग भी किया जा रहा है। प्राचीन काल में भारत में संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भाषाओं का राजभाषा के रूप में प्रयोग होता था। राजपूत काल में तत्कालीन भाषा हिन्दी का प्रयोग राजकाज में किया जाता था। किंतु भारतवर्ष में मुसलमानों का आधिपत्य स्थापित हो जाने के बाद धीरे-धीरे हिन्दी का स्थान फ़ारसी और अरबी भाषाओं ने ले किया। इस बीच में भी राजपूत नरेशों के राज्य क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग बराबर प्रचलित रहा। मराठों के राजकाज में भी हिन्दी का प्रयोग किया जाता था। आज भी इन राजाओं के दरबारों से हिन्दी अथवा हिन्दी-फारसी, द्विभाषिक रूप में जारी किए गए फ़रमान बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। यह इस बात का द्योतक है कि हिन्दी राजकाज करने के लिए सदैव सक्षम रही है।         

      अंग्रेज़ों ने अपने शासन काल में तत्कालीन प्रचलित राजभाषा फारसी को ही प्रश्रय दिया। परिणामस्वरूप भारत के आज़ाद होने के कुछ समय बाद तक भी फारसी भारत के अधिकांश भागों में कचहरियों की भाषा बनी रही। इस बीच 1855 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी को भारत की शिक्षा और प्रशासन की भाषा के रूप में स्थापित कर दिया था। धीरे धीरे वह न केवल पूर्णतया भारतीय प्रशासन की भाषा बन गई, बल्कि शिक्षा, वाणिज्य, व्यापार तथा उद्योग धंधों की भाषा के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गई। इनता ही नहीं वह भारत के शिक्षित वर्ग के व्यवहार की भी भाषा बन गई। फिर भी, अंग्रेज़ी शासक यह महसूस करते रहे कि भारत की भाषाओं को बहुत दिनों तक दबाया नही जा सकता, अतः उन्होंने हिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी को और अन्य प्रदेशों में, वहां की भाषाओं को प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में शिक्षा का माध्यम बनाया। इस श्रीगणेश का शुभ परिणाम यह हुआ कि हिन्दी और भारतीय भाषएं विकसित होने लगीं और वे उच्च शिक्षा का माध्यम बनी।

      महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं के उद्गारों व प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि जब भारतीय संविधान सभा में संघ सरकार की राजभाषा निश्चित करने का प्रश्न आया तो विशद विचार मंथन के बाद 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ और तभी से देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी विधिवत भारत संघ की राजभाषा है।

          किसी भी स्वाधीन देश के लिए, जो महत्व उसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का है, वही उसकी राजभाषा का है। प्रजातांत्रिक देश में जनता और सरकार के बीच भाषा की दीवार नही होनी चाहिए और शासन का काम जनता की भाषा में किया जाना चाहिए। जब तक विदेशी भाषा में शासन होता रहेगा, तब तक कोई देश सही अर्थों में स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्पष्टता और सरलता से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। नूतन विचारों का स्पंदन और आत्मा की अभिव्यक्ति, मातृभाषा में ही सम्भव है।

      राजभाषा देश के भिन्न भिन्न भागों को एक सूत्र में पिराने का कार्य करती है इसके माध्यम से जनता न केवल अपने देश की नीतियों और प्रशासन को भलीभांति समझ सकती है, बल्कि उसमें स्वयं भी भाग ले सकती है।प्रजातंत्र की सफलता के लिए ऐसी व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है। विश्व के सभी स्वतंत्र देश और नवोदित राष्ट्रों ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उनका उत्थान, उनकी अपनी भाषाओं के माध्यम से ही सम्भव है। इसलिए यद्यपि अंग्रेज़ी के समर्थकों ने उसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और समृद्धि की बड़ी वकालत की, फिर भी राष्ट्रीय नेताओं ने देश के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली और देश के अधिकांश भाग में समझी जाने वाली भाषा हिन्दी को ही भारत संघ की राजभाषा बनाया।  

      राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियम के अनुसार अनेक कागज पत्रों एवं प्रकाशनों को द्विभाषिक रूप में अथवा केवल हिन्दी में जारी करना होता है। विविध प्रयासों के परिणामस्वरूप हिन्दी का प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों विभागो, कार्यालयों, उपक्रमों आदि में वार्षिक कार्यक्रमों को पूरा करने का भरकस प्रयास किया जा रहा है। हिन्दी में सर्वाधिक काम करने वाले मंत्रालयों व विभागों को शील्ड देने की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त हिन्दी में पर्याप्त काम करने वाले को आर्थिक प्रोत्साहन देने की योजना भी विचाराधीन है। राजभाषा विभाग अपने विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से राजभाषा नीति, राजभाषा अधिनियम तथा राजभाषा नियमों की जानकारी देने का पूरा प्रयास कर रहा हे। विभिन्न मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समितियाँ तथा राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। तात्पर्य यह है कि हिन्दी में काम करने का वातावरण बनाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं। यद्यपि हमारी मंजिल कुछ दूर अवश्य है, किंतु हम सब का सहयोग लेते हुए सशक्त और संतुलित कदमों से उसकी तरफ बढ़ रहे हैं। हमें आशा है, हम देर सवेर अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँचेंगे।

हिंदी भाषा पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोलने में चौथे नम्बर पर आती हैजो लोग इस हिंदी भाषा में ज्ञान रखते हैं, उन्हें हिंदी के प्रति अपने ज़िम्मेदारी का बोध करवाने के लिये इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, जिससे वे सभी अपने कर्तव्यों का सही पालन करके हिंदी भाषा के गिरते हुए स्तर को बचा सकें ।अगर हिंदी का विकास करना हैं तो लोगो को दूसरी भाषाओं को छोड़ कर अपनी देश की जन्म भाषा को स्वीकार करना पढ़ेगा इस दिन सभी सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय में अंग्रेजी के बदले हिंदी भाषा को उपयोग करने की सलाह दी जाती है । जो हर साल हिंदी में अच्छे कार्य और अच्छी तरह से इसका प्रयोग करता है तथा लोगो तक हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार करता हैं तो उसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाता है ।

      आज कल संचार का युग हैं इसमें सोशल मीडिया जैसे फेसबुक,व्हाट्स एप, ट्विटरऔर अन्य मीडिया में हिंदी के कई विकल्प रखे गए हैं और साथ ही हिंदी के भंडार भरे पड़े हैं. इसमें भी हिंदी भाषा के शब्दकोश के बारे में जानकारियाँ दी जाती हैं।

फिल्में

बाज़ार

      हिंदी हमारे देश की राजभाषा है, जिसपर हमें गर्व होना चाहिए कि हम हिंदी भाषी हैं। हमें देश की राजभाषा का सम्मान करना चाहिए। हमारे देश में सभी धर्मों के लोग रहते है उनके खान-पान, रहन-सहन और वेश-भूषा अलग-अलग हैं पर एक हिंदी ही हैं जो सभी धर्मों के लोगो को एकता में जोड़ती है । हिंदी भाषा हमारे देश की धरोहर हैं जिस तरह हम अपने तिरंगे को सम्मान देते हैं उसी प्रकार अपने देश की राजभाषा को भी सम्मान देना चाहिए ।

      देश के लेखकों ने हिंदी के ऊपर कई गीत और रचनाएँ लिखी हैं, जिसमें एक हैं-हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तान हमारा।ये शब्द देश की शान में लिखे गए हैं और हमें गर्व महसूस कराते हैं. जय हिन्द जय भारतराष्ट्रीय एकता के संदर्भ में हिन्दी के महत्व का बखान करता है । हमारे बुद्धिजीवियों नेराजकीय संस्थाओं से ही हिन्दी के विकास का सपना देखा है।  हम व्यक्ति से राष्ट्र के क्रम में सोचते हैं। हमारा मानना है कि व्यक्ति मज़बूत हो तो ही राष्ट्र मज़बूत हो सकता है।  इस मजबूती को आधार  अपनी भूमि, भाव तथा भाषा के प्रति विश्वास दिखाने और उसे निभाने से ही मिल सकता है।  हम आज देश में अनेक प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक संकटों के आक्रमण का सामना कर रहे हैं।  इस स्थिति से उबारने के महत्वपूर्ण  कारक का कार्य हिंदी कर सकती है ।यकीनन इसी से राष्ट्र का कल्याण होगा।


'मंजरी' का लोकार्पण माननीय श्री मनोज कुमार, वरिष्ठ डी.पी.ओ.,पूर्वोत्तर रेलवे,इज़्ज़तनगर,बरेली और नामित अध्यक्ष,विद्यालय प्रबंध समिति, केवि, पूरे, बरेली द्वारा दिनांक 11.08.2020 को किया गया । 

साथ ही दिनांक 13.08.2020 को संपन्न हुई  नराकास की छमाही बैठक में 'मंजरी' को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।

 

 लोकार्पण  का वीडियो-

https://www.youtube.com/watch?v=ct3s-_bpCRo


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