क्रांति दिवस 08.08.2021

 

आइए, याद करें अगस्त क्रांति को

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क्रांति दिवस









जला अस्थियाँ बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर

लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की पंक्तियाँ एक बार फिर भारत की वीर-प्रसू धरती को नमन करती है और हमें अगस्त क्रांति का स्मरण कराती हैं। यूँ तो भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए तमाम छोटे-बड़े आंदोलन किए गए। अंग्रेज़ी सत्ता को भारत की ज़मीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी उसे 'अगस्त क्रांति' के नाम से जाना गया । इस लड़ाई में गांधी जी ने 'करो या मरो' का नारा देकर अंग्रेज़ों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। यही वजह है कि इसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' या ‘क्विट इंडिया मूवमेंट’ भी कहते हैं। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई अधिवेशन में 'भारत छोड़ो आंदोलन' यानी 'अगस्त क्रांति' का प्रस्ताव पारित किया गया।इस आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं।

इस आंदोलन का आरंभ मुंबई के एक पार्क से हुई थी, जिसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया। आज़ादी के इस आखिरी आंदोलन को छेड़ने की भी खास वजह थी। दरअसल जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ था, तब अंग्रेज़ों ने भारत से समर्थन मांगा था, जिसके बदले में भारत की आज़ादी का वादा भी किया था। भारत से समर्थन लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने का अपना वादा नहीं निभाया, तो महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ अंतिम युद्ध का एलान कर दिया। इस एलान से ब्रिटिश सरकार में दहशत का माहौल बन गया।गाँधीजी ने हालाँकि अहिंसक रूप से आंदोलन चलाने का आह्वान किया था लेकिन देशवासियों में अंग्रेजों को भगाने का ऐसा जुनून पैदा हो गया कि कई स्थानों कुछ हिंसात्मक घटनाएँ और हड़ताल की गई।

अंग्रेज़ी सरकार इस बारे में पहले से ही सतर्क थी इसलिए अगले ही दिन गाँधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर दिया गया। कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में बंद कर दिया गया। उन्होंने देशभर में एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया । लगभग सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन युवा नेत्री अरुणा आसफ अली हाथ नहीं आईं और उन्होंने नौ अगस्त 1942 को मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर गाँधीजी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का शंखनाद कर दिया।इतिहासकार विपिनचंद्र ने अपनी पुस्तक 'भारत का स्वतंत्रता संघर्ष' में लिखा है कि युद्ध की आड़ लेकर सरकार ने अपने को सख्त से सख्त कानूनों से लैस कर लिया था और शांतिपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों को को भी प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बावजूद आंदोलन पूरे जोश के साथ चलता रहा, लेकिन गिरफ़्तारियों की वजह से कांग्रेस का समूचा नेतृत्व शेष दुनिया से लगभग तीन साल तक कटा रहा।

एक तो अंग्रेज़ों की रीढ़ द्वितीय विश्व युद्ध के कारण टूट रही थी, दूसरी ओर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ उनकी जड़ें हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस आंदोलन से अंग्रेज़ बुरी तरह बौखला गए। गाँधीजी का स्वास्थ्य जेल में अत्यधिक बिगड़ गया, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखने के लिए 21 दिन की भूख हड़ताल की। 1944 में गाँधीजी का स्वास्थ्य बेहद बिगड़ जाने पर अंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया।महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन सोची-समझी रणनीति का हिस्साा था। इस आंदोलन के असर को इस तरह से समझा जा सकता है कि बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। इस आंदोलन की खास बात यह भी रही कि इसमें पूरा देश शामिल हुआ। इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों के साथ राजनीतिक वार्ता की प्रकृति को बदल दिया, जिसने  अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।भारत छोड़ो आंदोलन का असर यह हुआ कि अंग्रेज़ों को लगने लगा कि अब उनका सूरज अस्त होने वाला है। ठीक पांच साल बाद 15 अगस्त 1947 को वह दिन आया, जब अंग्रेज़ों के प्रतीक यूनियन जैक का स्थान तिरंगे ने ले लिया ।

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