राष्ट्रीय एकता दिवस 2021
राष्ट्रीय एकता दिवस 2021
राष्ट्रीय एकता और अखंडता: समय की पुकार
भारत अनेक धर्मों, जातियों और भाषाओं का देश है। धर्म, जाति एवं भाषाओं
की दृष्टि से विविधता होते हुए भी भारत में प्राचीन काल से ही एकता की भावना
विद्यमान रही है। जब कभी किसी ने उस एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। भारत
का एक-एक नागरिक सजग हो कर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध
खड़ा होने को तत्पर हुआ है। राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और
जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय गौरव पर अभिमान नहीं है, वह
नर नहीं नर-पशु है।
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है।
राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय हैं संपूर्ण भारत की
आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक
एकता। हमारे कर्म-कांड, पूजा-पाठ, खान-पान,
रहन-सहन और वेशभूषा में अंतर हो सकता है,
किंतु हमारे राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में एकता होनी चाहिए। इस प्रकार अनेकता
में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है। एकता भावनात्मक शब्द है, जिसका अर्थ है- एक होने का भाव। देश का सामाजिक, सांस्कृतिक,
वैचारिक तथा भावानात्मक दृष्टि से एक होना ही एकता है। राष्ट्रीय
एकता का मतलब ही होता है कि राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और
विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे
का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक क्षमता ही महत्वपूर्ण नहीं होती
बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और
भावनात्मक निकटता की समानता आवश्यक है। भारत देश को गुलामी, सांप्रदायिक
झगड़ों, दंगों से बचाने के लिए देश में राष्ट्र एकता का होना
अति आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता देश के लिए कितनी आवश्यक है यह हमें अंग्रेजों की
वर्षो की गुलामी से समझ में आ जाना चाहिए। हम जब जब असंगठित हुए हैं। हमें आर्थिक
एवं राजनीतिक रूप से इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हमारे विचारों में जब-जब संकीर्णता आई,
आपस में झगड़े हुए। हमने जब कभी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा,
हमें हानि ही हुई। हम विदेशी शासन के अधीन हो गए। एकता और अखंडता
शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित है। एकता एक मनोवैज्ञानिक विचार है,
जो नागरिकों के बीच एक होने की भावना पर बल देता है। अखंडता एक
भौगोलिक विचार है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्रीय भूभाग को
अपने में समाहित किए हुए है। यह तो स्पष्ट है कि बिना एकता के अखंडता संभव नहीं
है। अखंड राष्ट्र बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम संगठित रहें।
भारत जैसे विशाल देश में अनेकता का होना स्वाभाविक
ही है। धर्म के क्षेत्र में हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि विविध
धर्म के लोग यहां निवास करते हैं। सामाजिक दृष्टि से विभिन्न जातियां, उप जातियां, गोत्र आदि विविधता के सूचक हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से खान-पान, वेशभूषा, पूजा-पाठ आदि की भिन्नता मैं भी अनेकता है। इतनी विविधताओं के होते हुए भी
भारत अत्यंत प्राचीन काल से एकता के सूत्र में बंधता आ रहा है।
राष्ट्र की आंतरिक शक्ति तथा सुव्यवस्था और बाह्य
सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रीय एकता की परम आवश्यकता होती है। भारतवासियों में
यदि ज़रा-सी भी फूट पड़ेगी, तो अन्य देश हमारी
स्वतंत्रता को हड़पने के लिए तैयार बैठे हैं। जब-जब हम असंगठित हुए हैं, हमें आर्थिक और राजनीतिक रूप से इसकी कीमत चुकानी पड़ी है। अतः देश की
स्वतंत्रता की रक्षा और राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्र की एकता का होना परम
आवश्यक है।
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं
आज़ादी-प्राप्ति के समय हमने सोचा था कि अब हम सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता
और भाषागत अनेकता से ऊपर उठकर देश को अखंड बनाए रखेंगे किंतु अभी भी ऐसी अनेक
चुनौतियाँ हैं, जिनका सामना हमें करना है।राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न
कर देने वाले अनेक कारण हैं-
राष्ट्रीय
एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा सांप्रदायिकता की भावना है। सांप्रदायिकता एक
ऐसी बुराई है, जो मानव मानव में फूट डालती है,
समाज को विभाजित करती है। दुर्भाग्य से सांप्रदायिकता की बीमारी का
जितना इलाज किया गया है, वह उतनी ही अधिक बढ़ती गई है। तुच्छ
निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए लोग परस्पर लड़ रहे हैं,
जिससे देश का वातावरण विषैला होता जा रहा है। सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से सभी
धर्मों में सेवा, परोपकार, सत्य,
प्रेम, समता, नैतिकता,
अहिंसा, पवित्रता आदि गुण समान रूप से मिलते
हैं। जहां भी द्वेष, घृणा और विरोध है, धर्म नहीं है। शायर इकबाल ने कहा है-
मजहब
नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी
है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
अंग्रेजों
ने ‘फूट डालो शासन करो’ की नीति के
अंतर्गत भारत-पाक विभाजन कराया और दोनों देशों के बीच सदैव के लिए वैमनस्य का बीज
बो दिए। राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सांप्रदायिक विद्वेष, स्पर्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावनाओं को मन
से त्याग कर परस्पर सांप्रदायिक सद्भाव रखना होगा। सांप्रदायिक सद्भाव का अर्थ है
कि हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी भारत भूमि को अपनी मातृभूमि मानकर साथ रहें और सद्भाव के
साथ रहें। यह राष्ट्रीय एकता के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक है।सभी धर्म एक समान हैं, कोई छोटा, तो कोई बड़ा नहीं है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सभी पूजा के स्थल हैं और
इन सभी स्थानों पर आत्मा को शांति मिलती है। सांप्रदायिक कटुता को दूर करने के लिए
हमें परस्पर सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। सभी भारतवासी परस्पर प्रेम से रहें, धर्म ग्रंथों के वास्तविक संदेश को समझें और उनका स्वार्थपूर्ण अर्थ न
निकालें।
भारत बहुभाषी राष्ट्र है। विभिन्न प्रांतों की
अलग-अलग बोलियां और भाषाएं हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा को श्रेष्ठ और उसके
साहित्य को महान मानता है। इस आधार पर भाषा का विवाद खड़ा हो जाता है और राष्ट्र की
एकता तथा अखंडता भंग होने के खतरे बढ़ जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के
मोह के कारण दूसरी भाषा का अपमान तथा अवहेलना करता है, तो वह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार करता है इसलिए सभी भाषाओं को समुचित आदर
देना आवश्यक है ।
प्रांतीयता अथवा प्रादेशिकता की भावना भी
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। कभी कभी किसी अंचल विशेष के
निवासी अपने पृथक अस्तित्व की मांग करते हैं। ऐसी मांग करने से राष्ट्रीय एकता का
अखंडता का विचार ही समाप्त हो जाता है। क्षेत्र विशेष के विकास के लिए हमें स्वयं
प्रयास करना चाहिए तथा शांतिपूर्वक सरकार के उस क्षेत्र के विकास के लिए दृढ़ता से
आग्रह करना चाहिए। यह आदर्श ही हमारे राष्ट्रीय एकता का आधार है।
भारत में जातिवाद सदैव प्रभावी रहा है। प्रत्येक
जातीय अपने को दूसरी जाति से उच्च समझती है। कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था टूटी और
जाति-प्रथा के कहर के रूप में उभरी। जातिवाद ने भारतीय एकता को बुरी तरह प्रभावित
किया है। जातिवाद राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधक है।
राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के उपाय
वर्तमान
परिस्थितियों में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-
सर्वधर्म
समभाव-सभी धर्मों के आदर्श श्रेष्ठ हैं। हमें सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना
चाहिए। धार्मिक अथवा सांप्रदायिक आधार पर किसी भी धर्म को ऊंचा-नीचा या बड़ा छोटा
नहीं समझना चाहिए।
समिष्ट
हित की भावना- यदि हम अपनी स्वार्थी और संकुचित भावनाओं को भूलकर समिष्ट हित का
भाव विकसित कर लें, तो धर्म, क्षेत्र, भाषा और जाति के नाम पर न सोचकर समूचे
राष्ट्र के विषय में सोच पाएंगे। अलगाववादी भावना के स्थान पर राष्ट्रीय भावना का
विकास होगा, जिससे अनेकता रहते हुए भी एकता की भावना सुदृढ़
होगी।
एकता
का विश्वास-भारत में अनेकता में ही एकता निवास करती है। हमें अपने आचरण और व्यवहार
से ऐसे प्रयास करना चाहिए कि सभी नागरिक प्रेम और सद्भाव द्वारा एक-दूसरे पर विश्वास
कर सकें।
शिक्षा
का प्रसार-शिक्षा हमारे मन को उदार तथा दृष्टिकोण को व्यापक बनाती हैं। भारत में
अशिक्षा के कारण लोग भावावेश में बह जाते हैं और अवांछित कार्यों में लिप्त हो
जाते हैं। इस कार्य को विद्यालयों और पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से किया जा सकता है।
इससे बच्चों के मन में प्रारंभ से ही सभी धर्मों, भाषाओं और जातियों के प्रति सम्मान जाग्रत होगा । हर विद्यार्थी अनिवार्य
रूप से अपनी मातृभाषा के साथ-साथ एक प्रादेशिक भाषा भी सीखे,
ऐसा प्रयास किया जा सकता है ।
राजनीतिक
पहल- स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेज़ों ने जातीय विद्वेष तथा धार्मिक फूट डालने का
कार्य किया था । परंतु स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमारी सरकार है, हमारा शासन है, अब ऐसी रजानीतिक समझ की आवश्यकता है, जो जनता में एकता का भाव सुदृढ़ कर सके।
आज विकास के साधन बढ़ रहे हैं, भौगोलिक दूरियाँ कम हो रही हैं, समूचा विश्व एक गाँव
में तब्दील हो गया है, संचार के साधनों ने हमें अद्यतन कर
दिता है, किंतु आदमी और आदमी के बीच दूरी बढ़ती जा रही हैं।
हम सभी को मिलकर राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयास करने होंगे,
तभी भारत एक सबल राष्ट्र बन पाएगा। हमारी सरकार और मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका
निभा सकते हैं। भारत ही एकमात्र देश है, जहां मंदिरों,
गिरिजाघरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों
और मठों में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व है। आज आवश्यकता है कि हम सब देशवासी कर्म पथ
पर दृढ़ प्रतिज्ञा होकर देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारत
माता की सेवा में तन-मन-धन से जुट जाने की राह पर चल निकलें। जब तक हम एकता के
सूत्र में बंधे हैं, तब तक मजबूत हैं और जब तक खंडित हैं,
तब तक कमज़ोर हैं। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की
कविता की इन पंक्तियों को पढ़कर अपनी राष्ट्रीयता को सर्वदा अखंड रखने का संकल्प
लेना चाहिए -
बाधाएं आती हैं आएं, घिरे प्रलय की घोर घटाएं।
पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं।
निज हाथों में हंसते हंसते, आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
Comments
Post a Comment